शुक्रवार, 18 जुलाई 2008
मैं भूत बोल रहा हूँ
मैं भूत बोल रहा हूँ मेरे प्यारे जीते - जागते दोस्तों! मैं किसी और दुनिया से एक ताज़ा ताज़ा मारा इंसान बोल रहा हूँ! आपकी इस धरती पर गुज़र कर थोड़े ही दिन पहले इस अजीबोगरीब भूतों की दुनिया में आया हूँ! सच जानिए की बड़ा सुकून मिला है मुझे यहाँ आकर! धरती की जिंदगी की कोई आपाधापी नहीं ! बस चैन ही चैन ; आराम ही आराम ! कोई भाव, उत्तेजना, प्रेम, क्रोध, काम, ममता, जान -पहचान, परिचित आदि कुछ भी नहीं ! हम सारे भूत बस इधर से उधर तैरते रहते है और हाँ जैसा की आप सब सोचते और बोलतें है, हम किसी को भी बे- वज़ह परेशां भी नही करते! पता नहीं क्यों आपलोगों ने हमारे बारे में क्या-क्या बातें फैला रखी हैं ! जो दरअसल हमसे मैच ही नहीं करती; लेकिन आप सब उन्हें फैलाते जाते है! दोस्तों इंसान के अलावा कोई भी ऐसा जीव नही है, जो बेवजह किसी को परेशां करता हो, उसे छेड़ता हो ! पता नहीं क्यों, इंसान को ऐसा करने में क्या मिलता है, बैठे-थाले वो अक्सर ऐसी हरकतें करता रहता है जो कोई और जीव शायद सपने में भी नहीं सोच सकता ! मैं आपको आज यह राय दे रहा हूँ की कभी यह भी सोचिये की अन्य जीव इंसानों के बारे में क्या सोचते होंगे ! लो भाई यहाँ भी लाइट चली गई ! अब अंधेरे में कैसे लिखूं! तो लौट कर मिलता हूँ ब्रेक के बाद..!!
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1 टिप्पणी:
ha ha ha ha ha ha ye bhe khub rhe but last mey ek baat smej nahe aaye bhootnath ko kub se light ke jruret pdhne lge han? Vo to andheron ka badshah hota hai na? Kya hua pdh gye na soch mey hai na? Regards
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